प्रगटे शंकर अविनाशी
फिर झूम उठी है काशी
बोले जय जय कैलाशी साँसों की सरगम
हर हर शिव बम बम, हर हर शिव बम बम – 2
माथे पर चन्द्र, त्रिपुण्ड और कर में त्रिशूल-डमरू शोभित
है नाग स्वयं गलहार बना, कटि पर मृगचर्म करे मोहित
जन-जन का वह सर्वम् है
कर्पूरवर्ण गौरम् है
वह सत्यम् वही शिवम् है वो ही सुंदरतम
हर हर शिव बम बम, हर हर शिव बम बम – 2
कितनी सदियाँ बीतीं अब तक, बाबा की कठिन प्रतीक्षा में
उत्तीर्ण हुए हैं अब जाकर, हम पावन प्रेम-परीक्षा में
हर पूरी हुई दुआ है
गंगा ने शीश छुआ है
नन्दी से आज हुआ है भोले का संगम
हर हर शिव बम बम, हर हर शिव बम बम – 2
हैं रोम रोम पुलकित सबके, नयनों में बादल छाये हैं
बरसों के बाद ‘असीम’ सुखद, खुशियों के शुभ दिन आये हैं
सपनों ने पर हैं खोले
मन मस्त मगन हो डोले
लेकर हाथों में बोले बाबा का परचम
हर हर शिव बम बम, हर हर शिव बम बम – 2
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