वो यकता है मगर लगता कई है

वो यकता है मगर लगता कई है।

हुनर उसमें ये देखो वाकई है।।

रकीबे बज़्म में क्या आप दिखे,

दिले नादान को फुर्सत हुई है।।

मर न जाता तो और क्या करता,

बहार सामने से ही गई है।।

हाथ में फूल लेकर चलता है,

इक छुरी जेब में रखता नई है।।

कलम को देखो मेरे पर लगे हैं,

लबों से उसने तो जबसे छुई है।।

रौशनी जिन्दगी में कहां शेष,

ये जो तूफां दीये का मुद्दई है।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!