तेरे रंग रूप में रोज ढलता रहा
मन की आंखों से दिल में उतरता रहा
सुर्ख चेहरे पर बिखरी जो जुल्फे कभी
चांद का पहरा उसको समझता रहा
जब सुना तेरे पायल की झंकार तो
रोज नगमे नए गुनगुनाता रहा
पा न पाया था जब तक मैं तुझको यहां
तेरी तस्वीर दिल में बनाता रहा
उंगलिया जब उठी थी हमारी तरफ
नग अंगूठी से उगली सजाता रहा
जब नजर थी झुकी ओठ कपन हुआ
भाव मे डूब दिल मुस्कुराता रहा
जाने कब से ये रिश्ते हमारे रहे
तुम नदी और हम तो किनारे रहे
जन्मो जन्मो का चलता रहा सिलसिला
तुम हमारे रहे हम तुम्हारे रहे
ऐसे वैसे बने कैसे-कैसे यहां
रिश्ते खुद से ही खुद को मिलाते रहे
पालू खुशियों का सागर जो दिल का यहां
मन तरंगों में ही डूबते हम रहे
बंद ना हो कभी द्वार दिल का तेरा
मन की खिड़की सदा खोलते हम रहे
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