वसंत आया, वसंत आया
मच रहा चहुँ ओर शोर है
आश्चर्यचकित हूँ मन की अवस्था को देखकर….
शांति में डूबा है या हो रहा आनंद “विभोर” है
प्रचंड शीत रूपी तंद्रा से मुक्ति मिली….
भावों की गति अब खिली धूप के मुक्त गगन की “ओर” है
वसंत आया वसंत आया
मच रहा चहुँ ओर शोर है
पवित्र प्रेम प्रसून की फैली सुगंधि ….
मन भँवर उल्लास रस रहा “बटोर” है
वसंत की इस प्रशांत रात्रि में …
परमात्म चन्द्र को ही ताकना चाहता अब मन रूपी “चकोर” है
वसंत आया वसंत आया
मच रहा चहुँ ओर शोर है
संसार विटप से झरते पत्ते …
कहते विनाश विनाश या कहते कुछ” और “हैं
विनाश निर्माण का बीज है भव तरु पर सजने वाला अब नव जन्म पर्ण का” मौर” है
वसंत आया वसंत आया
मच रहा चहुँ ओर शोर है
वसंत का आकाश है रंग बिरंगा…
मन उत्साह से भरा हुआ उमंग में” सराबोर “है
कोई नभचर न भटके अपने मार्ग से …
उस ब्रह्म अनंग के हाथ में हर जीव पतंग की “डोर” है
वसंत आया, वसंत आया
मच रहा चहुँ ओर शोर है