इमली के पेड़ों के पीछे छुपे हुए हो तुम ।
या मौसम की बेचैनी में भरे हुए हो तुम ।
नदिया की नीली आँखों में बसे कई चेहरे ।
हर चेहरे की तफसीलों में बुने हुए हो तुम ।
रस्ता ऐसे बजता जैसे बजे कोई पायल ।
अम्बर पे लाली की तरहा रचे हुए हो तुम ।
या ख़ुशबू के पीछे पीछे उड़ें तेरी यादें ।
या फूलों की पेशानी पर झुके हुए हो तुम ।
बागीचों ने अपने तन में तुम्हे छुपाया है ।
या झरनों के मीठेपन में बसे हुए हो तुम ।
घाटी बाँहें फैला कर क्यों मुझे बुलाती है ।
पुल पर क्यों लगता है जैसे खड़े हुए हो तुम ।
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