लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
मुग़ल आये तो हिन्दुओं ने कमियां ज्यादा देखि या खूlबीयां
सोचती तो होंगी
लेखक और उसकी लेखनी
हमने औरंगजेब को ज्यादा सोचा या अकबर को
मुग़ल ने पृथ्वीराज चौहान को ज्यादा सोचा या
गद्दार राजाओं को
गुलामी की बेड़ियाँ इस तरह ही हैँ बनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
मन और दिल दोनों एक हैँ
फिर भी दमन तो हुआ है मन का
दिल पर इल्जाम देने से खून रिसता है कंही
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
गर हिन्दू मुसलमान की अलग करेंगे लेखनी
तो इस काल में नाजुक दौर से गुजरेगी हर एक लेखनी
फिर भी सच हो या सत्य कड़वा तो लगेगा ही
जातिवाद में घिरी मिलती ही है लेखनी
लेखनी वो जो खाइयाँ मिटाने निकले
कट्टरता कितनी भी हो रिझाने निकले
मुश्किल भले है नामुमकिन नहीं है
इस दौर में समझें गर लेखनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
उदाहरण या नमूने के लिए
बॉलीवुड प्रत्यक्ष है सामने
मुश्किल है फकत उर्दू या हिंदी में हो बॉलीवुड की लेखनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
कट्टरता का ज़माना हर दौर है
कभी हिन्दू तो कभी मुस्लिम घनघोर है
समाज में जहर जैसा हर दौर है
क्या फ़र्ज या कर्तव्य से विमुख या मुकरती है हर एक लेखनी
ऐसा तो हरगिज कदाचित हो न पायेगा
अकबर और जोधा का रंग तुम्हे अपनायेगा
जाने कब मिटेगी ये खाइयाँ
कोई दौर उनका तो हमारा आएगा
फिर भी संग रहे तब है रौशनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
अर्ज इतनी है इस दौर की
दवा न दो तो जहर भी मत दीजिए
ईश्वर हो या खुदा अलग मत कीजिये
पूजा और इबादत गर तौलोगे
तो जहर ही हर दौर में घोलोगे
गुनाह और पाप ही के दर खोलोगे
मीठी और कड़वी होती ही है लेखनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
हिन्दू में हिन्दू का जो जहर है
जानते सब है क्योंके कहर है
मुस्लिम में मुस्लिम का जो जहर है
जानते वो भी है क्योंके कहर है
लेखनी में मिठास है और क्रांति
आजाद और स्वतंत्र हो तो क्रांति
बगावत की भी देखि है लेखनी
जो दोनों के लफ़्ज़ों शब्दों से है सनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी
रंग और दलदल दोनों सोचिये
रंग चुनिए दलदल मत नोचिये
तब जा कर ईश्वर हो या खुदा
लेखनी और रौशनाई में
रंग भरता रहेगा और होंगी घनी
लेखक और उसकी लेखनी
स्वतंत्र हो आजाद हो तो है घनी