रिश्तों की अहमियत

“भूलों नहीं अहमियत रिश्तों की कभी,
ये वो नाज़ुक डोर हैं जों जुड़ती नहीं फिर से।”

वर्तमान युग में रिश्ते-नातों की अहमियत कम होती जा रही है। आजकल के रिश्तों में स्नेह, लगाव, अपनापन और भरोसा कम हो रहा है और तनाव, साजिशें, रंजिशें, शंकाएं, टकराहट, कड़वाहट और दरारें बढ़ रही हैं। जबकि हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में रिश्तों को बहुत ज्यादा महत्व और अहमियत दी गई है। हमारे साहित्यिक ग्रन्थों में मजबूत रिश्तों को लेकर तमाम ऐसे उदाहरण मिलते है जो काबिले तारीफ है। राम जैसा पुत्र, भरत जैसा भाई, सीता जैसी पत्नी, राधा जैसी प्रेमिका, कर्ण जैसी मित्रता और सुदामा-कृष्ण जैसी मित्रता, एकलव्य जैसा शिष्य, पन्ना धाय जैसी स्वामीभक्तिन, जीजाबाई जैसी माता, अशोक महान जैसा जनप्रिय राजा, दधिचि जैसी परोपकारिता और मेहमान भगवान है, जो मजबूत रिश्तों के अहमियत और संवेदनशीलता को दर्शाता है। लेकिन आज हमारे अहम् और वहम की वजह से हर रिश्ते टूटते और बिखरते जा रहे हैं। आजकल के रिश्ते-नाते मंदी के दौर से गुज़र रहे हैं जो अंत्यंत चिंताजनक है। आज की डिजिटल दुनिया में सबसे बड़ा सवाल है कि हमारे रिश्तों में स्नेह, लगाव, अपनापन कम क्यों हो रहें हैं?

जीवन को जीने के लिए जैसे तीन चीजों की आवश्यकता होती है। रोटी, कपड़ा और मकान। वैसे ही रिश्तो का वास्तविक आधार तीन बिंदुओं पर टिका होता है…विश्वास, समर्पण और स्नेह। लेकिन आज कल के रिश्तों में विश्वास, समर्पण और स्नेह तीनों कम हो गया है और आवश्यकता अधिक हो गई है। स्वार्थ प्रबल हो गया है। हर कोई अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर बात करता है या साथ रहता है। जबकि रिश्तों को पालना पड़ता है, ठीक उसी तरह जैसे एक मां निस्वार्थ भाव से एक बच्चे का पोषण करती है। लेकिन आज के दौर में बनावटी और दिखावटी पन लोगों में इतना बढ़ गया है कि वो अपनों के बीच प्रतिस्पर्धा करते हैं और खुद को बड़ा और सामने वाले को छोटा समझते हैं, यही आधुनिक भावना रिश्ते को तार-तार कर रही है।

अत्यधिक भौतिकवादिता ने संवेदना रुपी भावनांए कम कर दी है। आजकल के रिश्तों में ‘हम’ की जगह ‘मैं’ की भावना बढ़ती जा रही है। आज का आदमी अधिक ‘प्रेक्टिकल’ हो गया है। इस कारण ‘इमोशन’ खत्म हो गए हैं। उसे केवल अपने बैंक बैलेंस की चिंता है, लाइफ बैलेंस की नहीं। जबकि रिश्तो को पनपने के लिए संयम, प्रेम और विश्वास की जरूरत होती है, लेकिन नैतिक मूल्यों की कमी या गिरावट के कारण हम लोग “काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, इर्ष्या और आसक्ति” पर नियंत्रण नहीं कर पाते इसलिए आपसी विश्वास पैदा ही नहीं होता और रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। दोनों ही पक्ष से ईमानदारी नही निभाई जाती है, दोनों ही लोग महा स्वार्थी होते है, दोनों की तरफ से लगातार झुठ पर झूठ बोला जाता है, रिश्ते बस नाम के रह जाते है। आजकल लोगों की सोच कितनी निर्लज्ज और निकृष्ट हो गई है कि आज के समय में ईमानदारी का तो मतलब ही बेवकूफी है। किसी को एक सीधी सपाट बात कहकर देखिए, आपके अपने आपको दस बार कहेंगे “क्या जरूरत थी बोलने की” सच है, लेकिन कहने की जरूरत नहीं थी, बात अपने मन में रखना सीखो। लो हो गई तुम्हारी ईमानदारी धराशायी। अपना फायदा देखते हुए बात बनाते चलों, निष्पक्षता और ईमानदारी के चक्कर में पड़ोगे तो कोई अपना नहीं बचेगा।

आज के इस बदलते युग में जहां रिश्तों की परिभाषा बदली है साथ साथ रिश्तों की अहमियत भी बदल गई है। इसमें सोशल मीडिया की भी कृपा है। सोशल मीडिया ने सोशल डिस्टेंस को और बढ़ा दिया है। जब एक बच्चे का जन्म होता है तभी से वह कई रिश्तों से जुड़ जाता है जैसे– माता -पिता , दादा-दादी, बुआ, मामा आदि। जीवन में कुछ ऐसे भी रिश्ते होते है जो प्रेम व विश्वास कि आधार पर बनते हैं, परंतु आज के आधुनिक युग में रिश्तों को एक समझौता बना दिया हैं। रिश्तों की अहमियत को लोग भूलते जा रहे हैं। लोग अपने परिवार के सदस्यों को समय ना देकर इंटर्नेट, सोशल मीडिया को ज़्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं । हर रिश्ते की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है प्रेम व विश्वास जहाँ इन दोनो में कमी आने लगती है वहाँ रिश्तों में ख़ालीपन आना शुरू हो जाता है ओर ऐसे में एक -दूसरे से जीवनपर्यन्त जुड़े तो रहते है परंतु उसे बोझ की भाँति ढोते रहते है। कहा जाता है की सबसे पवित्र रिश्ता माँ-बाप का बच्चों से होता है । वे अपनी इच्छाओं का त्याग कर अपने बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति करते है उन्ही को बड़े होकर अपने माँ -बाप का बुढ़ापा भारी लगने लगता हैं ओर उन्हें उन्ही के घर से निकालकर वृद्धा आश्रम में छोड़ देते हैं यदि घर में भी रह रहे हो तो उनको भी हिस्सों में बाँट देते हैं ।

आज सम्पत्ति के लालच में भाई-भाई का दुश्मन हो रहा हैं। प्रायः देखा है पति-पत्नी अपने सच्चे रिश्ते को अहमियत नहीं देते। रिश्तों की अहमियत भूलने के साथ ही कुछ लोगों के द्वारा रिश्तों को कलंकित करने की ख़बरें भी आम हो गई है। लोग रिश्तों का लिहाज़ भूलते जा रहे हैं। अहम, वहम व बदलतीं मानसिकता ने रिश्तों में कड़वापन घोल दिया है। रिश्तों में इतना बिखराव आ गया हैं उसे समेटना मुश्किल हो गया हैं।
लोगों को यह सोचना चाहिए जो स्वयं से पहले तुम्हें प्राथमिकता देते है उनकी अहमियत को कैसे भूल सकते हैं..??

जब आप रिश्तों को महत्व देते हो तब तक हर रिश्ता बना रहता है जब आपकी तरफ से कोशिश कम हो जाती है, तब दूसरा साथी भी उस रिश्तों को बनाने की कोशिश करना बंद कर देता है। आजकल केवल एक तरफा त्याग और बलिदान नहीं किया जाता है, बल्कि दोनों तरफ से कोशिश की जाती है। यदि आप केवल मेहमान की तरह व्यवहार करोगे तब परिवार के लोग उस मेहमान को भगाने की कोशिश करने लगते है। आजकल कोई भी एक स्वार्थी इंसान के साथ रहना नहीं चाहता है। सभी को खुद का महत्व भी पता होता है। वह अपने लिए भी बहुत कुछ चाहता है। इसलिए जो मिल रहा है उसका प्रतिदान देना भी सीखो वरना खाली हाथ रह जाओगे। आपको किसी पर बोझ नहीं बनना है बल्कि दूसरों के बोझ को कम करना है। तभी हर रिश्तों को सामान्य बनाया जा सकता है।

हमारे अपनों से जुड़े रिश्तों में आर्थिक मुनाफा हो या न हो पर यह हमारी ज़िन्दगी को अमीर बना देते हैं। हमारी जिन्दगी अमीर है तो इंसान के पास कोई कमी नहीं रहती। रिश्ते हमारे जीवन चक्र को आसान और सफल बनाने में हमारी मदद करते हैं। इसलिए हम सभी को पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ अपने जीवन के हर रिश्ते को निभाना चाहिए। चाहे वह मां-बाप का रिश्ता हो, पति-पत्नी का रिश्ता हो, भाई-बहन का रिश्ता हो या फिर दोस्ती का रिश्ता ही क्यों न हो। रिश्ते प्रेम, प्यार, मोहब्बत, स्नेह, लगाव, अपनापन, त्याग, बलिदान, भरोसा और विश्वास से मजबूत और स्थिर होते हैं। “रिश्ते नाते वो होते हैं जिसमें शब्द कम लेकिन समझ ज्यादा हो, जिसमें तकरार कम और प्यार ज्यादा हो, जिसमें उम्मीद कम और भरोसा ज्यादा हो।”

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रचनाकार

Author

  • डॉ प्रदीप कुमार सिंह

    असिस्टेंट प्रोफेसर-प्राचीन इतिहास.मऊ-उत्तर प्रदेश. Copyright@डॉ प्रदीप कुमार सिंह/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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