रह जाते यदि राजा बनकर जीवन लक्ष्य ना पूरा होता

आज अवध के राजभवन का उत्सव भी गमगीन हुआ
जिसको मिलना राज सिंहासन उसको तो बनवास मिला
युद्ध कला पारंगत कैकेयी राजा का जब प्राण बचाया
खुश हुए राजा दशरथ जी से मांग लो कुछ भी बचन ये पाया
स्वार्थ भाव में डूब कैकेयी वचनों को जब याद दिलाया
भरे हुए बोझल मन से ही राजा जी ने वचन निभाया
आज समय आया है यहां जब दोनों कर्मों का फल आया
पुत्र मोह में मरने का अभिशाप मिला जो उसको पाया
मानती थी वो राम को जितना उतना कोई मान न पाया
भेज दिया बन राम को उसने स्वार्थ भाव जब मन में आया
गलत नहीं थी मांत कैकई विधि ने यही विधान बनाया
लेकर के अकलंक को सिर पर माता का वो फर्ज निभाया
आने का जो लक्ष्य था जग में मार्ग कैकेई ने दिखलाया
दीन गरीब निरीह जो बन में उनका भी उद्धार कराया
राज बिछड़ने की ना चिंता प्रजा बिछड़ने का गम पाया
मर्यादा में रहके राम ने अपना सारा फर्ज निभाया
शकल अयोध्या विचलित होकर भाव में डूब के नीर बहाया
यश अपयश सब विधि के हाथ में राजपुरोहित ने समझा

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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