मोबाइल

कराग्रे वसते लक्ष्मी की
भूलि गये अब बात ।
आंख खोलते बिस्तर पर ही
मोबाइल हो हाँथ ।।

मोबाइल से आज हुए हैं
अपने भी बेगाने ।
इसी मोबाइल के चक्कर में
घर में मिलते ताने ।।

ताने भैईए जो देते हैं
वो भी पकड़े फोन ।
नज़र उठाकर नहीं देखते
मुख से बोले कौन ।।

राह भले चल रहें हो लेकिन
रहते आंख गडाए ।
अगर हाँथ से छूट ये जाए
आंख अंधेरा छाये ।।

जब से मोबाइल हांथो में
सबके भैईया साजा ।
घड़ी छूट गई सब हाँथन से
और छूटि गया बाजा ।।

हर हाँथन में अब तो भैईए
नाचि रहे धरमिन्दर ।
सारी दुनियाँ घूमी लो भैईया
मोबाइल के अन्दर ।।

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रचनाकार

Author

  • राम सहारे मिश्र

    श्री राम जानकी मंदिर, पुरानी दाल मंडी केसा के सामने, केनाल रोड कानपुर,Copyright@राम सहारे मिश्र/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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