मैं ही इस जग रचयिता हूं,
मैं पालनकर्ता भी कहलाता हूं ।
कण कण में नजर मैं आता हूं ।।
मैं धरा से पाप मिटाता हूं,
मैं संघारक भी कहलाता हूं ।
मैं ही सृजन,मैं हूं प्रलय,
मैं ही ये पवन, चलाता हूं ।।
स्वांस_स्वांस में, बास है मेरा,
सबसे ही प्रेम जताता हूं ।
अधर्म जब_जब बढ़ जाता है,
तब_तब मैं उसे मिटाता हूं ।।
मैं पुष्पों को महकाता हूं,
सबको मैं मार्ग दिखाता हूं ।
दिनकर,चंद्र,नक्षत्र, सभी,
उंगली पर अपनी नाचता हूं ।।
मुझमें में है शिव ब्रह्मा विष्णु,
मैं अविनाशी भी कहलाता हूं ।
मैं करता हूं,दिन_रात सभी,
मैं ये सृष्टि चक्र,चलाता हूं ।।
मैं ही देवकी के गर्भ से जन्मा,
मैं यसुदा घर माखन खाता हूं ।
इंद्र में जब अभिमान जगा था,
तब गोवर्धन को, मैं ही उठता हूं।।
कंस के अत्याचारों से
ये धरणी बड़ी अकुलाई थी ।
कर के अंत उस पापी का,
जग की पीर मिटाई थी ।।
इसलिए सारे विश्व का,
मैं जगत पिता कहलाता हूं ।।
अब उठो पार्थ मोह को त्यागो,
गांडीव की प्रत्यंचा तानो ।
क्षत्रिय का कर्म युद्ध करना,
खुद को भी जरा तुम पहचानो ।।
तुम चलते जाओ मेरे संग संग,
मैं तुमको मैं मार्ग दिखाता हूं ।।