मेरे प्रियतम को ना जगाओ,
अब तक तो ये जाग रहे थे,
अब जी भर कर सो लेने दो।।
इसी तिरंगे की रक्षा में,
तुमने अपनी कुर्बानी दी।
गिरते-गिरते पर भी तुमने,
अंतिम बार सलामी दी।।
हरदम हाथ में लेकर अपने,
सदा इसे फहराया है।
आज इसी को ओढ़ के देखो,
घर अपना तूं वापस आया है।।
इसे कभी ना गिरने दूंगा,
भले हीं मैं गिर जाउंगा।
देकर लहू बदन का अपना,
मातृभूमि का कर्ज चुकाऊंगा।।
यही वचन दिया था तुमने,
अपना वचन निभाया है।
आज इसी को ओढ़ के देखो,
घर अपना तूं वापस आया है।।
मां को भी वचन दिया था तुमने,
मां ! तेरा मान बढ़ाउंगा।
मातृभूमि की सेवा में अपना,
सारा लहू बहाउंगा।।
सांस रहेगी जब तक तन में,
तेरे पथ पर बढ़ता जाऊंगा।
अंतिम बूंद बहा कर अपना,
चरणों में शीश चढ़ाउंगा।।
मुझको भी वचन दिए थे प्रियतम,
जीवन भर साथ निभाने का।
यदि लौट ना पाया तो फिर,
अगले जीवन में भी पाने का।।
गर्भस्थ शिशु से बोला था तूने,
बेटा ! तुमको वीर बनाउंगा,
मातृभूमि की सेवा में फिर,
सरहद पर ले जाऊंगा।।
कई वचन निभाए तुमने ,
कई वचन अधूरे हैं।
गिला ना शिकवा फिर भी तुमसे,
फर्ज तुम्हारे पूरे हैं।।
मिटा सिंदूर मांग से मेरा,
देख ? लहू का सिंदूर लगाती हूं।
तेरे हीं जैसा होगा तेरा बेटा,
कसम लहू की खाती हूं।।
धन्य हुई मैं होकर तेरी,
तूने मान बढ़ाया है।
हर जन्मौं में तूं हीं मिलना,
सूने मन को तूं हीं भाया है।।
देख शिशु को रूप में तेरा,
मैं तो अपना गम भुल जाउंगी।
पर , तूं जो देख सका ना इसको,
यही भुला ना पाउंगी।।