मुस्कराने लगे हैं

आजकल मुस्कराने लगे हैं

कुचल कर फूल सा दिल मेरा वो,

‌ आजकल मुस्कराने लगे हैं।

जिनसे मतलब नहीं था कभी भी,

‌ ‌ उनकी महफ़िल जाने लगे हैं।।

ख्वाब देखे सुनहरे सुनहरे,

‌ देख पाये न फ़रेबी चेहरे,

आईना टूटता न क्या करता,

इतने पत्थर चलाने लगे हैं।।

ये ज़माने की कैसी हवा है,

इतनी तब्दीली पहले न देखी,

छोड़कर अपनी जन्नत लावारिस,

रेत का घर बनाने लगे हैं।।

खतरा लहरों से कुछ भी नहीं है,

साहिल भी तो नज़र आ रहा है।

माझी ही अब तो बनकर के तूफां,

कश्तियों को डुबाने लगे हैं।।

बज़्म में बात जो चल रही थी,

सुनके मुझको हुआ बहुत ताज्जुब,

एक दीया भी जला जो न पाये,

वो अंधेरा भगाने लगे हैं।।

हाल भी पूछने वो न आये,

जिनको अंगुली पकड़ कर चलाये,

मेरी दौलत में इतना असर है,

‌‌ शेष अपना बताने लगे हैं।।

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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