पार जाके सात सेतू रहनुमा जो बन गए
छोड़ अपनापन पराए गुलिस्ता के हो गए
याद में उनकी सदा ही मा तड़पती रह गई
लौट कर आए कहां वो जो वहां के हो गए
छोड़ कर के जो चले तो मां अकेली रह गई
लोरी किसको अब सुनाती आज चुप मां सो गई
घर ये उनका पालने का आज सूना हो गया
अब तलक छायी बहारें खिजा में बदल गई
उनका सपना था बसाएंगे कोई मंजिल नई
स्वप्न पूरा करने में ही अपनेपन से खो गए
योग्यता से आज अपने लक्ष्य ऊचां पा गए
भाव में ही डूबी मां के पलक को भीगा गए
भावना का ज्वार भाटा दिल में उठता रह गया
दिल से उठके लहरें उनकी आंख से बरस गया
भावना का तेल भरा बत्ती प्रेम बन गई
करुण भाव जो ऊंगा तो अग्नि दिल में जल गई
फूल बनके जो खिले थे जिंदगी के बाग में
मुरझूरा गई बहारे प्रेम जल अभाव मे
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