शोणित था माँ का दूध नहीं था
तुम्हें गर्भ में जो थी पिलाती
लाने को दुनिया में तुमको
सहा था माँ ने दर्द अपरिमित
आये जब जग, तनय बने तुम
वन के सुकोमल, नवकिसलय सम
निर्बल, निश्छल, स्वकर्म में अक्षम
तब बनकर माँ तेरा सहारा
और लहू को दूध बनाकर
उठाकर बांहों के पलने में
दुग्ध सुधामय पान कराया
जहाँ गई तुम्हें लिए अंक में
ममता की शीतल छाँव किये
गाती गीत थी तुम्हें सुनाती
कभी हँसाती,कभी रुलाती
कभी निबाला बना प्यार से
बिठा गोद में तुम्हें खिलाती
क्योंकि वह ममता की देवी
माँ,उस पर भारत की नारी
तब छोटे, अब बड़े हुए तुम
तब असहाय,अबल, अज्ञानी
अब तुम हुए सबल, सज्ञानी
माँ, निर्बल, करुणा-मूर्ति
नवनीत ह्रदय, पावन गंगा सी
पूर्ण किया ममत्व, प्यार
तुम भी दायित्व करो स्वीकार
अब जरुरत माँ को सेवा की
शीघ्र, सहर्ष करो स्वीकार||
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