कैद कर कब तक रखोगे
मैं सदा दुनियां से हारी
क्या कर रहा पागल मदारी।।
प्रतिबंध पग-पग पे लगाया, लगाम तूं इतना कसा
असत् जाल में आकर न जाने, मन मेरा कैसे फँसा।
अपाहिज बनाके वीर बनता, कर रहा है दुर्दशा
मन व्यथित करके भी तूं ही, हृदि में मेरे कैसे बसा।।
प्यार में व्यापार करके
अब दिखाता रंगदारी
क्या कर रहा पागल मदारी।।
ना समझी का खेल – खेला, समझ आयी देर में
प्रेम की परिभाषा न समझा, राम खुश थे बेर में।
तुम जुल्म ढा-ढा योद्धा बने , मैं मिटी अंधेर में
नसीब मुझको कहाँ लायी, क्यों पड़ी मै फेर में।।
नयन निर्झर से झरे
जैसे दाँव जीता है जुआरी
क्या कर रहा पागल मदारी।।
अब पर निकलने वाले मेरे, उड़ुगी आसमान में
तेरे रोकने से ना रुकुंगी, सैर होगा विमान में।
तलवार जंगी कब तक रहेगी, तेरे बनाये म्यान में
काट दूंगी सर तेरा भी, यदि दिखा मैदान में।।
स्वछंद हूँ अब बंध कैसा
आज हूँ दुनिया पे भारी
क्या कर रहा पागल मदारी।।