सब जन उसके अपने हैं,वो मदन गोपाल सबके हैं,
एक हाथ में मुरली अपने,दूजे में सुदर्शन रखते हैं ।।
माखन को कभी चुराते हैं,गिरवर को कभी उठाते हैं,
सूर रहीम मीरा जिसके, भोर शाम गुण सदा गाते हैं ।।
जो द्रोपदी का चीर बढ़ाते हैं,नरसी का भात चढ़ाते हैं,
ऐसे दीनदयाल कृष्ण को,हम सादर शीश झुकाते हैं।।
कभी गीता ज्ञान सुनाते हैं,युद्ध का शंख बजाते हैं,
अधर्म बढ़ जाता हैं धरा पर,तब गोविंद स्वमं ही आते हैं।।
भक्तों की लाज बचाते हैं,नटखट लीला दिखाते हैं,
गोकुल बृंदावन बरसाना,मोहन की याद दिलाते हैं ।
यमुना तट सूना सूना सा,प्रभु लीला नहीं रचाते हैं,
गैय्या तुमको सदा बुलाती,मोहन क्यूं नहीं आते हैं ।।
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