जब से मुझसे बिछड़ गए तुम याद बहुत ही आती है
दिल में उपजा भाव विरह की अग्नि हृदय को जलाती है
दर्द छुपा है दिल में जो ओ बाहर ना दिख पाता है
आंख से आंसू बहता हरदम मन विचलित हो जाता है
करुण वेदना छाती दिल में आह दिलों से उठती है
रोम रोम में कंपन होता कुश के जैसे चुभती है
कष्ट बताएं किसको अपना उसको दूर करेगा कौन
अपने दिल पर पत्थर रखकर हरदम रह जाता हूं मौन
आंखों का पानी सूखा पर घाव बना रह जाता है
दिल भावुक हो जाता जब जब घाव हरा हो जाता है
एक दिन का ये बिरह नहीं जीवन भर अब तो दूर हुए
सहा नहीं जाता है फिर भी सहने को मजबूर हुए
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