अंधेरा बहुत था, मगर आगे बढ़ने चला था।
पढ़ना मना था, फिर भी पढ़ने चला था।।
अकेले ही दुनिया हराने चला था…
धन्य है भीमा, धन्य है करमा।
अंधेरे में तूने किया है उजाला।।
बंदिश बहुत थी फिर भी लड़ने चला था….
नमन है मेरा उनको,
जिसने जीना सिखाया।
सबको सद्जीवन मिले,
सो संविधान बनाया।।
कानून है सर्वोपरि, सबको बताने चला था…..
मिलकर रहो तुम, उदार बनो तुम।
धन्य है “बुद्धा”, जानो सदा तुम।।
नमन है मेरा उनको, फिर से जीना सिखाने चला था….
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