बहुत कुछ छूटा सा, बचा हुआ,
कहने को, करने को,
जैसे सब रह गया।
भावनाएं जो मन से लिपटी हुई,
कहना चाहा था,
पर दिल को थामना पड़ा।
बातें कई थी, बचपन के किस्से,
स्कूल, कॉलेज की बातें,
घर से जुड़े जज्बात,
शिकवे, शिकायतें, बहुत कुछ।
करना भी बहुत कुछ था,
उसके संग हंसी ठिठोली,
थोड़ा लड़ाई, थोड़ी शरारत,
खाना बनाना था, खिलाना भी था,
प्रेम जताना भी था।
हर एहसास को जीना था,
साथ व्यायाम भी तो करना था।
उपहार देना भी था, और लेना भी,
सेवा करना भी था, करवाना भी।
सबकुछ जैसे एक बिखरा हुआ स्वप्न सा हो गया,
हर उस प्रेमिका का, जिसे पत्नी बनना था।
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