बरसों से बेनूर है , खुशियों का फानूस ।
किस्मत होती जा रही , दिन पर दिन कंजूस ।
दुनिया के बाज़ार में , मैं इक तन्हा जान ।
सब मुझसे अनजान हैं , मैं सबसे अनजान ।
भिन्न भिन्न दोहे कहे , भिन्न भिन्न हैं शे’र ।
कोई मीठा आम है , कोई खट्टा बेर ।
सबने हमसे उम्र भर , चुकता किया हिसाब ।
बांच न पाया कोइ भी , मन की सरल किताब ।
मन पंछी मासूम सा , मन बच्चा नादान ।
तन दंगों की आग में , जलता हुआ मकान ।
केश घटाएं श्रावणी , मुख से झरती धूप ।
देह दमकती दामिनी , उजला उजला रूप ।
देख रहा हूं मैं जिसे , जीवन कहते लोग ।
आपाधापी उम्र की , और हज़ारों रोग ।
लाए उम्र उधार की , चढ़े सूद पर सूद ।
फिर भी मन में भर रहे , नफ़रत का बारूद ।
तुम हो तारे आंख के , तुम हो हमे अज़ीज़ ।
आओ तुमको बांध दें , उल्फत का तावीज़ ।
नई नई है ज़िंदगी , नया नया परिवेश ।
मान रहे माता पिता , बच्चों का आदेश ।
मन की खिड़की खोल कर , तुम्हे देखता रोज़ ।
करता हूं हर रोज़ ही , यादों को कंपोज़ ।