हजारों रंग फीके हैं प्रेम रंग सब पे भारी है
है फीकी इत्र की खुशबू, खुशबू रिश्तो की भारी है
हमारा सारा जीवन ही भले रंगीन हो जाए
भरी जो सादगी दिल में ओ हर रंगों पे भारी है
तल्ख लहजों से बातें आज तेरी दब भले जाए
मगर इन तेज बातों पर सदा ही मौन भारी है
लाघ जाए तू सागर या की लाघे जो खड़े पर्वत
कर्म और प्रेम भावो को लाघना सबपे भारी है
पढ़ी हो चाहे जितनी ही किताबें तुमने जीवन में
किताबें जो पढी है कर्म की वो सब पे भारी है
समझ जाओ भले ही विश्व की हर एक भाषा को
मगर दिल भाव की भाषा समझना सब पे भारी है
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