प्रेम पिपासा

अपरिछिन्न अलौकिक अविरल निश्छल सुसंस्कार कहां है।

सदा से विलसित रहने वाली प्रेम सुधा रसधार कहां हैं।

नव मालिका कली से भंवरा कहता है,

सदा अशेष सुबास कहां पर रहता है,

बाहों की माला सी कोमल पुष्पित शोभित हार कहां है।

सदा से विलसित ०

मधु की मधुता बौनी जिससे हो जाती है,

चिर क्लांति विश्रांति अचिर हो खो जाती है,

सप्तसिंधु के जल लघु करती प्रेम की अश्रुधार कहां है।।

सदा से विलसित ०

तपन देखकर अवनी की अम्बर रो पड़ता,

हरदी जरदी तजती चूना रंग बदल देता,

मन्मथ भी पथच्युत हो जिससे वह सोलह श्रृंगार कहां है।

सदा से विलसित ०

सूर्य चंद्र नक्षत्र प्रेम रस ढूंढ़ रहे हैं।

घोर तिमिर में दीप बुझाते मूढ़ रहे हैं,

शेष प्रेम की सीप से निकला अद्भुत मुक्ताहार कहां है।

सदा से विलसित०

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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