प्रार्थना

पाप-अनल से घिरा हुआ जग, मनुज दुखी रोता है

दया करो हे! जग-दुःख-त्राता, दास विनती करता है

कृपासिंधु तुम! बूंद कृपा की, जीवन पर बरसा दो

सोया हुआ मनुज का अंतस, निद्रालस, दूर भगा दो

मनुज भटक भ्रम-अन्धकार में, ज्ञान ज्योति फैला दो

लोभ, मोह के गर्त गिरे सब, ध्वंस, अशेष बना दो

भटक रहे सब सत्पथ से, वह राह पुनः दिखला दो

जगत्पति, हे! जग-निर्माता, जग दुःख दूर भगा दो

हिम्मत हार गए उनको, साहस, बल, ज्ञान अमित दो

निर्बल को बल, बुद्धि मूढ़ को, जग दुःख-बंध मुक्ति दो

निर्धन को धन, निराश जीवन में, उन्हें आशा का संबल दो

जिससे हो कल्याण जगत का, वह शक्ति, ज्ञान अमित दो ||

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रचनाकार

Author

  • डॉ दिवाकर चौधरी

    कल्याणी प्रतिभा हो मेरी, मधुर वर्ण-विन्यास न केवल||Copyright@डॉ दिवाकर चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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