पाप-अनल से घिरा हुआ जग, मनुज दुखी रोता है
दया करो हे! जग-दुःख-त्राता, दास विनती करता है
कृपासिंधु तुम! बूंद कृपा की, जीवन पर बरसा दो
सोया हुआ मनुज का अंतस, निद्रालस, दूर भगा दो
मनुज भटक भ्रम-अन्धकार में, ज्ञान ज्योति फैला दो
लोभ, मोह के गर्त गिरे सब, ध्वंस, अशेष बना दो
भटक रहे सब सत्पथ से, वह राह पुनः दिखला दो
जगत्पति, हे! जग-निर्माता, जग दुःख दूर भगा दो
हिम्मत हार गए उनको, साहस, बल, ज्ञान अमित दो
निर्बल को बल, बुद्धि मूढ़ को, जग दुःख-बंध मुक्ति दो
निर्धन को धन, निराश जीवन में, उन्हें आशा का संबल दो
जिससे हो कल्याण जगत का, वह शक्ति, ज्ञान अमित दो ||
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