प्रकृति से पियार करो

प्रकृति से जीवन हय हम सबके प्रकृति से पियार करव।

प्रकृति कईहां नकसान ना पहुँचाव उके कहर से डरव ।।

प्रकृति भगवान कय रुप प्रकृति कय सम्मान करव।

प्रकृति सबसे पियार करत हय कबहुं ना अपमान करव।।

नदी पहाड़ जंगल जानवर प्रकृति कय सुंदर उपहार।

इनके बचेंन से बचा रही इ सुंदर संसार।।

प्रकृति कय दुई सुंदर रुप शुद्ध हवा अउर सफा पानी।

प्रकृति से जो करय पियार दुनियम उ सबसे ज्ञानी।।

बाघ भाल लुमा हाथी गैड़ा लोमड़ी सियार जंगल कय परिवार।

सांप कछुआ बांदर घड़ियाल संरक्षण करव उद्धार।।

मेर मेर काय फल फुल तरकारी दाई के किसीस हिस उपकार।

प्रकृति का बरबाद करी जो मिटी सबके जीवन कय सार।।

सब मेर कय जीव जंतु का धरतीप जिएक हय अधिकार।

प्रकृति हय सबसे बड़ा प्रकृति से सब जने करव पियार।।

मेर मेर कय रूप रंग स्वाद प्रकृति से उपहार मिला हय।

बन जंगल नदी नाला पहाड़ से सबके जीवन खिला हय।।

धरती माता भाग्य विधाता प्रकृति से पियार करव सब।

जड़ी बूटी बीज बिरवन कय संरक्षण संभार करव सब।।

बेकसूर जंगली जानवरन के शिकार ना करो ।

हत्या हिंसा पाप के कमाई से जेब ना भरो।।

बनाई नाई सकत जिका बिगारेक अधिकार नाई हय।

प्रकृति से लगाव ना भावा समझो कोईस पियार नाई हय।।

जंगल काटी जानवर मारिक प्रकृति का जो सताइस हय।

फैक्ट्री धुंआ कचरा जो धरतीप गंदगी फाईलाईस हय।।

अपने स्वार्थ कय खातिर मनाई दुश्मन बना हय आज।

प्रकृति जो रिसियाई मनाई से जीयेक होई जाई मोहताज।।

आंधी पानी बाढ़ रोग आगजनि अउर तुफान।

प्राकृतिक कहर से धरती बनी जाई शमशान।।

जाड़ा गर्मी समय से ना बरखा रोज आई भुई चाल।

रोग फैली कोरोना जस मनईक मनाई बनी जाई काल।।

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रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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