पुस्तक-समीक्षा -‘प्रत्याशा’

कहानी-संग्रह – प्रत्याशा

लेखिका- अनुमिता शर्मा

प्रकाशक – हिन्द युग्म

अनुमिता शर्मा की कृति प्रत्याशा 11 चुनिन्दा कहानियों का संग्रह है. हर कहानी एक भिन्न रूप एवं आधार लिए हुए है कहना अतिशयोक्ति न होगी की कहानियों का गुलदस्ता लेखिका ने प्रस्तुत किया है .

रोमांच , प्यार-अभिसार , सामाजिक , ग्रामीण परिवेश , अवचेतन मन की दशा भावनात्मकता एकाकी जीवन , वृद्धावस्था जैसे विभिन्न विषयों पर लेखिका की कथन शैली प्रभावित करती है , भावनाओं का सूक्ष्म अवलोकन , विषय के गर्भ में उतर कर विषय को , उसमें अन्तर्निहित भावनाओं को समझने की क्षमता लेखिका में लक्षित होती है.

शब्द चयन सामान्य किन्तु स्थितियों के अनुकूल है, वाक्य विन्यास अत्यधिक सुगठित , प्रभावी एवं शुद्ध है । व्याकरण संबंधी कोई अशुद्धि नही नज़र आती । अधिकांश कहानियों के प्रमुख पात्र अंतर्मुखी व्यतित्व एवं काल्पनिक ,ख्वाबों की दुनिया मे विचरण करने वाले दर्शाए गए हैं .उपमाओं एवं विशेषणों का प्रयोग अच्छा है

हर कहानी में पात्र संख्या सीमित है उनका प्रवेश अथवा निर्गमन यथोचित एवं परिस्थिति के अनुकूल है . प्रकृति वर्णन के माध्यम से लेखिका ने बहुत ही सुन्दर उपमाएं देते हुए वातावरण का मनलुभावन चित्रण किया है .कई स्थानों पर लेखिका ने स्वयं के भीतर छुपे कवि हृदय का भी सुन्दर परिचय दिया है

पुस्तक का प्रारंभ लीक से हटकर अप्रत्याशित रूप से एक रोमांचक कहानी “दीवार पर लटकती लड़की” से करते हुए लेखिका ने चमत्कृत किया एवं सशक्त रचना की प्रस्तुति इतने बढ़िया, सधे हुए तरीके से की है कि पाठक शीघ्र अंत जान लेने हेतु बेताब रहता है जो रोमांचक किस्सागो कि कलम की विजय का द्योतक है ।

वही दूसरी कहानी “सत्तर के प्यार का भूगोल ” नारी केन्द्रित , एकाकीपन से जूझती ,प्रेम- अभिसार की कामनाओं के संग प्रेम प्रतीक्षित ख्वाबों में जीने वाली , किन्तु समयानुसार अपने मन पर नियंत्रण की क्षमता वाली युवती के मन की , उसके अंतर्द्वंदों की उसके ख्वाबों के सच होने और बिखरने के बीच की उसकी मनोदशा को बखूबी वर्णित करती है । एकाकीपन से सहसा उबरने पर मन के दबे हुए ज़ज़्बातों का उफान एवं पश्चातवर्ती ज़ज़्बातों पर नियंत्रण के दृश्य सुंदरता से लिखे गए है.

हृदय से प्रेमातुर , अभिसार एवं समर्पण हेतु नि:संकोच प्रस्तुत होने पर भी युवति के अनायास हृदय परिवर्तन को लेखिका जिस तरह से मर्यादित एवं सधी हुई भाषा में अश्लीलता से बचते हुए शिष्ट शैली में प्रस्तुत कर सकी है वैसा विरले कथाकार ही कर पाते है । लेखिका की नायिका संभवतः ख्वाब को ख्वाब ही रहने दो कोई नाम न दो …..विचारधारा से प्रेरित है किन्तु मानसिक अंतर्द्वंद के पश्चात स्वयं पर विजय प्राप्त करना कहीं न कहीं उसकी मानसिक मज़बूती को दर्शाता है ।

तीसरी कहानी गर्जन तर्जन” भी अनोखी है , विषय-वस्तु ग्रामीण परिवेश में पुराने रईसों पर है , प्रकृति का सुंदर एवं मनमोहक चित्रण प्रस्तुत किया गया है.मन के डर एवं भावों को प्रेत बाधा , आत्मा का प्रकोप मानना जैसे विषय भी दबे छुपे लेखिका ने शामिल किये है.

संवेदनशील , अत्यधिक भावनात्मक, प्रतिभा की पहचान न होने का गम कही न कही प्रसिद्धि पाने की ललक ,रिश्तों को सीमा तक खुले मन से स्वीकारती तजति , कभीकभी नकारात्मकता की ओर बढ़ती हुई , “ सिरंडीपिटी” की नायिका में दिखते ये समस्त भाव पाठक को कथा संग बांधने में पूर्ण सक्षम है . सीमा से परे आकस्मिक आनन्द की अनुभूति का वर्णन करते हुए जिस खूबसूरती से प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन लेखिका ने किया है वह कथा के शीर्षक चयन सिरंडीपिटी को पूर्णतया सार्थक करता है ।

लेखिका के लेखन पर कहीं न कहीं अमृता प्रीतम जी के लेखन जैसी गहरी गंभीर सोच , लिखने की अद्भुत शैली की छाप महसूस होती है । लेखन में वह गाम्भीर्य है जो कि एक अनुभवी लेखक के पास ही हो सकता है ।हर कहानी एक भिन्न कलेवर लिए हुए है । परन्तु मुख्यतः एकाकी नारी केंद्रित , सुंदर प्राकृतिक वर्णन से युक्त पर किसी न किसी नारी से जुड़े मुद्दे की ओर इंगित करती हुई है ।

कहानी “वो कही नही थी” में जहाँदहेज , पारिवारिक बंटवारे जैसी सामाजिक समस्याओं को इंगित किया है वहीँ लेखन से आत्मा का अस्तित्व , प्रेत ,मौत , समलैंगिकता जैसे विषय कथानक को बोझिल न बनाते हुए भी उपस्थित रहे है , जो आम तौर पर अन्य लेखकों हेतु अछूत ही रहते है

“सतह के नीचे ” एक विधवाकी कहानी है जो कभी एक अज्ञात लेखक को उनकी रचनाओं के कारण चाहती तो थी किंतु मात्र नि:श्छल पाठक एवं लेखक वाल प्रेम . भविष्य में उनके मिलन का घटनाक्रम अवश्य ही बहुत रोचक एवं रोमांचक बन पड़ा है ।

हर कहानी के पीछे पाठक को कुछ सोचने के लिए छोड़ जाना लेखिका की विशेषता है ।

अगली कथा “चेतना के अद्भुत तमाशे” पुनः अवचेतन मन व विचारों के झंझावात को दर्शाती है सीमित पात्रों द्वारा कहानी को जिस तरीके से आगे ले जाया गया है वह सुंदर एवं रोचक है ।

अगली कहानी “आत्मा या आजीविका” में मुफ़्लिसि के दौर में इंसान की मानसिक अवस्थाओं का बखूबी चित्रण किया गया है . कथा का नायक महानगरी में कुछ बनने के असंभव सपने को पूरा करने हेतु कितना और कैसे कैसे जूझता है सड़क छाप तांत्रिकों के खेल , इन का डर एवं असफलता के बादवापसी पर किन हालातों से दो चार होता है , वर्णन वाकई दिलचस्प है ।

अंतिम कहानी प्रत्याशा इस कथा संग्रह की अंतिम कथा है जिसमें एक ऐसे स्त्री पात्र को चुना है जिसे आम भाषा में काली जुबान वाले कहा जाता है उसके इस अभिशाप या आम जन के विश्वास को लेकर उत्पन्न स्थितियों का वर्णन है एवं कह सकते है कि पिछली कथा का शेष भाग है । अक्सर कथा का अंत न निर्धारित करना अथवा किसी बिंदु पर या दोराहे पर लाकर पाठक को विचारों की मझधार में उसे स्वयं अंत निर्धारित करने की स्वतंत्रता देना लेखिका की प्रस्तुति की विशेषता है .

पुस्तक को जैसा मैंने समझा समीक्षा रूप में प्रस्तुत है ।

पाठक कृपया पुस्तक को आद्योपांत पढ़ कर अपनी राय दें पर पढ़ें ज़रूर.

सादर

अतुल्य खरे

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रचनाकार

Author

  • अतुल्य खरे

    B.Sc,LLB. उज्जैन (मध्य प्रदेश)| राष्ट्रीयकृत बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक | Copyright@अतुल्य खरे/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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