पुस्तक-ड्रीम जर्नी
लेखक-भरत गढ़वी
प्रकाशक-हिन्द युग्म ब्लू
युवा लेखक भरत गढ़वी का यह प्रथम प्रयास होने के बावजूद वाकई अत्यंत सराहनीय है . युवाओं पर केंद्रित उन्होंने कथानक का ताना बाना रचा गया है .आज के युवा को हम , हरफनमौला , उश्रृंखल बेपरवाह या और भी कुछ नाम दे दें किन्तु वास्तविकता शायद कुछ और ही है . वह मस्तमौला है अवश्य किन्तु उसके मन के अन्दर के झंझावत को , खुद को साबित करने की , कुछ कर गुजरने की जिस पीड़ा को वह अपने अन्दर समेटे है ,उसे भरत जी ने बखूबी समझा है एवं शब्दों में खूबसूरती से बाँधा है . कथानक चूंकि युवाओं पर केन्द्रित है , छात्र जीवन पर है अस्तु मित्रों के बीच होने वाले हास परिहास को साथ लेकर चलते हुए गंभीर मुद्दों को भी आसान शब्दों में बड़ी सरलता से बिना बहुत घुमाये फिराए शालीनता के दायरे में रहते हुए लेखक कहने में सक्षम हैं. कई स्थानों पर ज़बरदस्त तीखे कटाक्ष कर लेखक ने अपनी सोच एवं हुनर का परिचय बखूबी दिया है .
युवाओं को प्रेरणा देने वाले कथन भी कई एक जगह आये है जो कथानक के साथ आगे बढ़ जाते है किन्तु डायरी के जो कुछ हिस्से दिए गए हैं वे कथानक की मांग होते हुए भी उस थोड़े से हिस्से को कुछ बोझिल बना देते है .
युवाओं को कई सन्देश भी बहुत साधारण तरीके से ही इस पुस्तक के ज़रिये मिलते हैं युवा को खुली आखों से देखे सपने पूरा करने के लिए जिद और जुनून का होना भी ज़रूरी है , और इस जुनून के फितूर में की गयी गलतियाँ हों या दिन रात का संघर्ष अपनी जिद के आगे सब बहुत छोटे है .
कथानक तीन सहेलियों के जुनून को लेकर है किंतु मकान मालकिन के पात्र को बहुत ज्यादा प्रभावी बनाया है जो कुछ एक स्थान पर मुख्य पात्रों को भी दबा जाता है
हालाँकि कहानी में स्थान विशेष एवं क्षेत्र विशेष के लिए किये जाने वाले संघर्ष को मात्र एक बानगी देते हुए उसकी वास्तविक भयावहता की तुलना में काफी कम दर्शाया गया है कह सकते हैं समझदार को इशारा किया गया है .
दृश्यों के बीच सामंजस्य अच्छे से बैठाया गया है एवं घटनाक्रम पाठक को बांधे रखने में सक्षम है .
भाषा स्तरीय है एवं वाक्य विन्यास भी अच्छा है . हास्य को सहजता से पिरोया गया है जो कहीं भी व्यर्थ या थोपा हुआ नहीं जान पड़ता .
हालाँकि समान विषयवस्तु पर कई लेखकों ने पहले भी काफी कुछ लिखा है किन्तु इस युवा कथाकार ने अंत को विशेषतौर पर रोचक एवं सुखांत बनाते हुए बाज़ी मार ली है .
अंत में , पुस्तक को जैसा मैंने समझा समीक्षा में प्रस्तुत है ..
शेष गुणी पाठकों पर
सादर,
अतुल्य खरे