नारी

युग युगों से हूँ बनी पहचान जग में प्रेम की,

क्या हुआ यदि मैं नहीं कान्हा की परिणीता हुई।

राम जिसके बिन कभी भी राम बन पाते नहीं,  

मैं धरा की गोद से निकली तो वह सीता हुई।।

लाश काँधे पर लिए भटके स्वयम्भू शिव मेरी,

भस्म करने को हुए उद्यत सकल ब्रह्माण्ड को।

द्रौपदी थी,केश बन्धनमुक्त अपने कर दिए,

कौन फिर भूले महाभारत के कौरव काण्ड को।।

नेह पाकर यदि सरल,निश्छल लहर हूँ प्रेम की,

तो वहीं अपमान होने पर प्रलय की ज्वाल हूँ।

मैं सुकोमल,स्निग्ध बाला हूँ तो यह भी सत्य है,

हो समय की माँग तो विकराल कठिन कराल हूँ।।

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रचनाकार

Author

  • शैलेन्द्र 'असीम'

    पूरा नाम : शैलेन्द्र कुमार पाण्डेय उपाख्य : असीम पता : पाण्डेय निवास रोहुआ मछरगावां, कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन - 274149 मो. न. 7007947309 Copyright@शैलेन्द्र 'असीम'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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