युग युगों से हूँ बनी पहचान जग में प्रेम की,
क्या हुआ यदि मैं नहीं कान्हा की परिणीता हुई।
राम जिसके बिन कभी भी राम बन पाते नहीं,
मैं धरा की गोद से निकली तो वह सीता हुई।।
लाश काँधे पर लिए भटके स्वयम्भू शिव मेरी,
भस्म करने को हुए उद्यत सकल ब्रह्माण्ड को।
द्रौपदी थी,केश बन्धनमुक्त अपने कर दिए,
कौन फिर भूले महाभारत के कौरव काण्ड को।।
नेह पाकर यदि सरल,निश्छल लहर हूँ प्रेम की,
तो वहीं अपमान होने पर प्रलय की ज्वाल हूँ।
मैं सुकोमल,स्निग्ध बाला हूँ तो यह भी सत्य है,
हो समय की माँग तो विकराल कठिन कराल हूँ।।
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