नारी तू नारायणी, जग की तू आधार।
तुझसे ही घर-बार, तुझसे ही संसार।।
तू ही कमला, तू ही गौरी, तु ही चंडी-काली।
तू ही माता जगदम्बा, तू ही है महाकाली।।
राधा-रुक्मणी-सीता तुम हो, तुम ही मीरा-चम्पा।
वीर शिरोमणि लक्ष्मी तुम ही, तुम शबरी की श्रद्धा।।
तुम सा साहस नहीं किसी में, नाहीं तुम सी ममता।
एक तुम ही जो सदा बनाती हो इस जग में समता।।
नाम सदा से पहले तेरा, फिर भी पीछे रहती।
सदा प्रेम बरसाती, लेकिन फिर भी दुख तुम सहती।।
कुछ भी नहीं असंभव तुमसे, तुम हो शक्ति स्वरूपा।
जग का है कल्याण तुम्हीं से, तुम हो परम अनूपा।।
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