देखो रुत आज होली की फिर आ गई
रंग भरकर दिलों में तो फिर छा गई
शुक्ल के पक्ष की पूर्णिमा रात है
आज पूरे गगन पर खिला चांद है
सबके दिल में ही छाया मधुर भाव है
लगता सबके दिलों का ये मेहमान है
चांदनी के रंगों को बिखेरे हुए
मन को शीतल बनाने ये फिर आ गई
डाल से पत्ते टूटे जो बिखरे पड़े
एक जगह आज इनको इकट्ठा करें
संग में दुर्गुणों को जला कर के हम
सबके दिल में ही अब प्रेम का रस भरे
होली होती सदा ही इसी के लिए
भाव पावन जो कर दे जगत के लिए
मन भरा जो गिला या शिकवा कोई
आज सब को मिटाने को फिर आ गई
चल रहा है शरद का ये अंतिम चरण
ग्रीष्म ऋतु अब तो दस्तक है देने लगी
अब निकल कर तिमिर के नीरानंद से
दिल में चैतन्यता अब जगाने लगी
खेत खलिहान धन से जो अब हैं भरे
आज उसको दिखाने वो फिर आ गई
चलता जो भी हमेशा है सत मार्ग पर
बाल बांका न उसका कोई कर सका
ईश पर अपने पूरा भरोसा तो कर
फाड़ देंगे प्रभु जो है खंभा खड़ा
सत्य को जो जलाया वो खुद जल गया
भाव में डूब होली बताने लगी
देखो रूत आज होली की फिर आ गई
रंग भरकर दिलों में तो फिर छा गई