यूँ साजिशों की उठती नज़र देखता रहा
कितना सहेगा मेरा जिगर देखता रहा
जिनकी जफाओं से यहाँ कितने ही दिल दुखे
उल्फत का ताज उनके ही सर देखता रहा
ज़ुल्मत मिटाने की थीं जिसे ख़्वाहिशें बहुत
चुपचाप वो हवा का कहर देखता रहा
आँखें उन्हीं की सम्त लगी थीं हरेक की
मैं जिनके दिल में दर्दे- नगर देखता रहा
खंजर से सारे ज़ख़्म हुए आर पार हैं
बेबस पे होता ज़ुल्म बशर देखता रहा
जो अड गये बचाने को वो क़त्ल कर दिये
हर कोई उस सितम का असर देखता रहा
किस कौम का था कितना लहू बह गया यहाँ
मंज़र ये राज शामो -सहर देखता रहा
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