गर तेरा भाव मेरे भावो में डूबा होता
माधुरी रात बनके दिल में उजाला होता
कभी ना देखता मैं आसमां के चंदा को
दिल में चेहरा तेरा गर चांद सा उतरा होता
कौध जाती ये बिजली दिल में मेरे रातों को
तेरा उरोज घटा बनके जो उभरा होता
बैठी रहती तू मेरे दिल में समा कर ऐसे
जैसे फूलों के बीच खुशबू का डेरा होता
सदा ही उगता मेरे भावो का पौधा ऐसा
जैसे जल में ही सदा पुष्प कमल हो खिलता
सदा ना देखता मैं तुझको रात ख्वाबों में
बनके हमराज मेरे साथ जो खड़ा होता
अंधेरा घना दिल से मेरे तब तो छठ जाता
प्रभात सूर्य सा तू बनके जो उगा होता
अगर न आती सजके रात मेरे ख्वाबों की
भुने पापड़ के जैसे दिल न ये टूटा होता
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