मैं मेरी तन्हाइयाँ थीं और थीं ख़ामोशियाँ
सिर्फ़ इतना ही बचा था तेरे मेरे दरमियाँ
गर तुझे मालूम होतीं इश्क़ की गहराइयाँ
तो समझता क्यूँ तेरेको आ रहीं हैं हिचकियाँ
मैं रहा सिज़दे में तेरे तू मगर मगरूर था
तो बता तूही कि किसने थीं बढ़ाईं तल्ख़ियाँ
बिन रुके चलता रहा मैं मंज़िलों की चाह में
बढ़ती ही जातीं थीं राहों की मगर लम्बाइयाँ
तू मेरे पहलू में था महफ़िल में सबके सामने
तो कोई कैसे समझता तेरी मेरी दूरियाँ
मैं तेरी रुसवाई के डर से नहीं चीखा सनम
इसलिए लेता रहा तू हल्के हल्के चुटकियाँ
उम्र भर सदके तेरी उल्फ़त के ए जानेजिगर
उफ़ किये बिन राज झेलीं हैं तेरी नादानियाँ
देखे जाने की संख्या : 114