गुजारा है अकेला पन तुम्हारे दूर रहने से
मगर तू ना समझ पाए तेरी कितनी जरूरत है
मैं जीवन जी के भी जीवन सा जीवन जी नही पाया
भरा पूरा मगर परिवार लगता सूना सूना है
हंसे सब लोग मिलकर के मगर ए दिल ना हंस पाया
तुमसे दूर हो करके अब तो खाली दिल ये रोया है
बीतता है ये पूरा दिन खुद अपने दिल को समझाते
मगर दिल मेरा ऐसा है कि कुछ भी ना समझता है
दिलों का हाल अपने जब किसी को हम सुनाते हैं
दिलों पर हाथ रख पत्थर भी आंसू को बहाते है
निकलता है ये आंसू जब कभी भी आंख से होकर
इन्हीं आंखों के जल से झील भी पानी बहाते है
न जाने कौन से कोने में जाकर छुप गए हो तुम
मुझे अब ना मिलोगे तुम जमाने भर ये लगता है
दब जाती है इच्छा जब कभी भी दिल के आंगन में
पनप कर प्यार दिल में ही सदा मेरे धड़कता है
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