भारत माँ की लाज बचाने
जाने कितने वीर चले ।
कमर लगाकर पिस्तौलों को
हांथो ले शमशीर चले ।।
जलियाँवाला बाग हो चाहे
हो अल्फ्रेड का पारक ।
सभी जगहपर जान की बाज़ी
लगा गये उद्धारक ।।
काकोरी में लूट खज़ाना
ख़ुद पर नहीं उड़ाया ।
एक एक पैसा उसका
आन्दोलन काम ही आया ।।
बाँका वीर बहादुर अपना
भगत सिंह अलबेला ।
गेंद कभी ना खेली जिसने
उसने बम से खेला ।।
राजगुरु सुखदेव सभी थे
जैसे संग सहबाला ।
याद मुझे अब भी हर पल है
जगरानी का लाला ।।
मातृभूमि को अर्पण जिसकी
हर पल मित्र जवानी ।
सुखसुविधाको दिया तिलांजलि
खाक वनों की छानी ।।
जिसके चालों का ना पाते
प्रतिपक्षी आभाश ।
सब नेताओं में ध्रुवतारा
अपने मित्र सुभाष ।।
अपनी भारत भूमि ये भैईया
ऐसे नहीं महान ।
लक्ष्मी बाई ने रक्खी थी
भैईया इसकी शान ।।
अब आकांक्षा ये ही मन में
तिरंगा फहराए ।
हर सैनिक सीमा से सुखमय
वापस घर को आए।।
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