ताँका साहित्य के दो कालजयी रत्न
हिंदी ताँका का अपना प्राचीन इतिहास रहा है यद्यपि इन दिनों उचित प्रोत्साहन के अभाव में इस विधा का उतना प्रसार नहीं हुआ जितना कि हाइकु का हो रहा है। मेरे अनुसार इस क्षेत्र में अभी बहुत से कार्य बाकी हैं जैसे- ताँका विधा पर केन्द्रित पत्रिकाओं का प्रकाशन, स्थानीय बोली भाषा में ताँका का एकल संग्रह तथा इसका विविध भाषाओं में अनुवाद।
मुझसे होकर गुजरे निन्मलिखित पुस्तकों ने अपनी महत्ता को अंतर्राष्ट्रीय साहित्य के भाल पर प्रतिबिंबित किया है क्योंकि ये अपनी तरह के विश्व में प्रथम ताँका संग्रह हैं। मैं इसलिए भी इनसे गौरवान्वित हूँ कि ये मेरी ही भूमि-बसना से रचे गए हैं। बसना जैसे छोटे से अंचल से इस विधा को विस्तार के लिए सोचना और कर दिखाना वाकई प्रशंसनीय कार्य है, हिंदी साहित्य की श्री वृद्धि के लिए अब ये दोनों संग्रह पाठकों तक उपलब्ध हैं। इन ताँका संग्रह का परिचय इस प्रकार है-
1 झूला झूले फुलवा– ताँका ‘इ’ संग्रह-रमेश कुमार सोनी
भूमिका- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, प्रकाशक-अक्षर लीला प्रकाशन, कबीर नगर, रायपुर
छत्तीसगढ़, पिन-492099, सन-2020, पृष्ठ-114, मूल्य- 200/-रु.
उपलब्धता-किंडल अमेज़न साइट पर ।
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‘झूला झूले फुलवा’, यह संग्रह विश्व की पहली हिंदी ताँका ‘ई बुक’ है, आपका यह कार्य आज के डिजिटल युग में हिंदी साहित्य के लिए गर्व का विषय है। ‘झूला झूले फुलवा’ संग्रह के ग्यारह विविध खंडों में –1 झूला झूले फुलवा, 2 पिया साँवरे, 3 तराशने का दर्द, 4 माटी का पुतला, 5 रिश्तेदारियाँ, 6 प्रेम- रंग भिगोए, 7 कोरोना का खौफ, 8 हमर छत्तीसगढ़, 9 आँसू सूखे हैं 10 यादें छेड़तीं और 11 नई दुनिया, कुल -344 ताँका हैं। आपकी सच्ची एवं सहज अनुभूतियाँ प्रेम,करुणा,प्रकृति तथा स्मृति से मानवीय रिश्तों का जीवंत लोक रचती हैं। आपके शालीन शिल्प तथा शब्दों की सार्थकता आपकी अनुभव जन्य सम्पदा है; आपने इसमें नये प्रतीक एवं बिम्ब की एक नयी रेखा खिंची है।
रमेश सोनी ने प्रकृति के मिज़ाज़ के लगभग हर रंग -ढंग को अपने ताँका संग्रह में बखूबी समेटा है। विविध अनुभूतियों से दमकती यह ई पुस्तक पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देगी, कुछ ताँका प्रकृति के कोमल हृदय की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। छत्तीसगढ़ के गौरव का गुणगान करते ताँका कवि का अपनी माटी के प्रति पावन प्रेम को भी दर्शा रहे हैं। कोरोना के उग्र रूप को भी आपने ताँका में उतारा है जिससे सम्पूर्ण विश्व आतंकित रहा यह आपकी समकालीन संवेदना की अद्भुत अभिव्यक्ति है।
रक्षक काँटें /महारानी -सी बैठी /ओस गुलाबी /पालकी बैठ चली /महारानी सजाने।
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2 ‘हरियर मड़वा’-रमेश कुमार सोनी
वैभव प्रकाशन-रायपुर, 2019, मूल्य-200/-, पृष्ठ-88,
ISBN: 978-93-88867-47-4, भूमिका-डॉ. सुधीर शर्मा-रायपुर
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यह संग्रह छत्तीसगढ़ी का विश्व में प्रथम ‘ताँका संग्रह ‘ है, अब तक का विश्व में किसी भी बोली में लिखा गया यह प्रथम संग्रह है। इससे छत्तीसगढ़ी पुष्ट होकर साहित्य की अग्रणी पंक्ति में खड़ी हो गयी है यह छत्तीसगढ़ की साहित्यिक समृद्धि और उसके सांस्कृतिक विस्तार के लिए महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस संग्रह में 466 ताँका हैं जो आज तक के किसी भी भाषा में रचे और प्रकाशित हुए एकल संग्रह से भी ज्यादा हैं, यह भी अपने आपमें एक रिकॉर्ड है।
‘हरियर मड़वा’ में विषय वैविध्य के साथ साथ लोक-संस्कारों का चित्रण है जो पाठकों को छत्तीसगढ़ को गहराई से समझने में सहायता करते हैं। छत्तीसगढ़ की महक इस संग्रह में सर्वत्र बगरी हुई है जो अंतस तक महसूस की जा सकती है। आपके ताँका की शब्दों की कोख से उपजे गंभीर अर्थ आपकी आत्मा की गूँज है जिसकी चिंतन धारा विशुद्ध छत्तीसगढ़ी है। किसी भी बोली में रचा गया यह अब तक का सबसे पहला संग्रह है इसमें आपके शब्दों का स्थापत्य जीवंत है और इसके ताँका साहित्यिक धरातल पर ठोस है। इस संग्रह के ताँका कलात्मक सुषमाई के निकष पर अद्वितीय हैं; ये ताँका अपने वक्त की कालजयी रचना है इनसे ही नयी पीढ़ी को सीखना है। यह एक शोध ग्रन्थ के रूप में सभी का मार्गदर्शन करेगी-
खुसी के बेरा / बरवाही कस हे / पाबे त जान/ जल्दी सिरा जाथे जी / जोर-जोर के रख ।