तनहा तनहा सफ़र लगने लगा है

तनहा तनहा सफ़र लगने लगा है।

दिले नादान क्या कहने लगा है।।

गये क्या बज़्म से वो रूठ करके,

इक दरिया अश्क का बहने लगा है।।।

जान की भी जिसे परवाह न थी,

किसी के नाम से डरने लगा है।।

दर-ओ-दीवार सूनी लग रही है,

वो वीराने में अब रहने लगा है।।

ये कंगन ढीले ढीले हो गये है,

असर कुछ उधर भी पड़ने लगा है।।

जरा सी बेरूखी का इतना असर,

रहा बीमार जो मरने लगा है।।

किसी ने वफा की है ‘शेष’ शायद,

हवाओं में दिया जलने लगा है।।

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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