किसी भी झूठे फसानों से, ख़ून बहता है।
हक़ीक़त अब कि तानों से, ख़ून बहता है।
छिपाना भी नहीं मुमकिन जमाने से शाय़द,
कि कातिलों के मकानों से, ख़ून बहता है।
उलट पलट के कभी देखना उसे तुम भी,
गुलाब के हर खानों से, ख़ून बहता है।
कबूतरों के ठिकानों को बदलना ही मत,
कि अक्सर उनके कानों से, ख़ून बहता है।
वफ़ा कहीं मिलती ही नहीं ज़माने में,
हवस के सारे ठिकानों से, ख़ून बहता है।
है बोलना ही हमें सच यहां ज़माने से,
सही है झूठे बयानों से, ख़ून बहता है।
लड़ोगे तुम अपने हक़ की खातिर बहुत जो,
तो जान लो कि गुमानों से ख़ून बहता है।
शरीफ़ कौन कहेगा हमें पता ही नहीं,
शरीफों के ही घरानों से, ख़ून बहता है।
अभी ‘अकेला’ पहाड़ों पे बैठना मुश्किल,
दिखेगा, देख चटानों से, ख़ून बहता है।
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