इक फूल सी बच्ची को मैंने,
कबाड़ उठाते देखा है।
पंखुड़ियों से हाथ हैं जिसके,
खुद का भार उठाते देखा है।।
कोई पराया भी नहीं।
संघर्ष भरे इस जीवन में
खुश होकर जीते देखा है..
साथ उसके वहां कोई ना था
ये पल जो मुझको रोके रखा।
खुशी है मेरी ये,
पंक में पंकज खिलते देखा है…
देख रहा था जो उसको मैं
उसने भी मुझको देख लिया,
फिर क्या,
मैंने उसको मुझपे हंसते देखा
सच कहता हूं देख इसे, संघर्ष में जीना सीखा है…
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