जानकी से बोले महावीर हो अधीर मातु,
प्रश्न एक आप बड़ा मन में जगाती हो।
करती नही हो समाधान न विधान स्वयं,
करती जो प्रभु हेतु मुझे सिखलाती हो।
लाल-लाल कहती हो किन्तु लाल को कभी न,
उसके सवाल का जबाब बतलाती हो।
कक्ष में झुकाये शीश पूछते कपीश मातु,
आप ये सिंदूर काहे माँग में लगाती हो?
वीर महावीर अब मत हो अधीर आज,
बात मैं तुम्हारी सारी तुमको बताती हूं।
करुणा निधान हेतु करती हूं जो विधान,
उसकी प्रधानता मैं तुमको सिखाती हूं।
प्रेम है विशाल तुम हेतु मेरे लाल आज,
प्रेम की पवित्रता मैं तुमको दिखाती हूँ।
मेरे प्रभु राम जी की आयु हो चिरायु इस,
लिये ये सिंदूर रोज माँग में लगाती हूं।
सुन के सिंदूर की अनंत महिमा को सन्त,
उठ के तुरंत कक्ष दूसरे में आए हैं।
डाल कर हाथ एक पात्र में सिंदूर के वो,
लाल लाल रंग देख अति हर्षाए हैं।
ध्यान धर वीर करुणा निधान राम जी का,
हाथ में सिंदूर लेके शीश पे लगाए हैं।
इतने सिंदूर से तो कम आयु ही बढ़ेगी,
इसलिये वीर लाल रंग में नहाए हैं।
लाल लाल करके शरीर महावीर दौड़े,
दौड़े प्रभु राम जी की सभा बीच आये हैं।
देख के विचित्र महावीर का शरीर राम,
संग जानकी भी हँसी रोक नही पाये हैं।
देख कर राम जी को निज चारो धाम जी को,
नयनों में नीर महावीर भर लाये हैं।
अंखियों में नीर देख प्रभु रघुवीर जी ने,
सभा बीच महावीर सीने से लगाये हैं।
बोले रघुनाथ तात बतलाओ क्या है बात,
भर भर ला रहे हो अंखियों में नीर तुम।
नव निधि दाता अष्ठ सिद्धियों के ज्ञाता काहे,
दिल में छिपा रहे हो वीर कोई पीर तुम।
कल्पनाएं सोच भिन्न मन हो रहा है खिन्न,
अब न करो निराश मुझे महावीर तुम।
बतलाओ लाल अंजनी के ये सवाल काहे,
कर आये लाल लाल अपना शरीर तुम।
बोले महावीर सुनो प्रभु रघुवीर नीर,
नयनों में वीर हो अधीर भर लाया है।
मत हो उदास प्रभु आपका ये दास खास,
मीलों मील दूर हर पीर धर आया है।
मातु को लगाता देख माथ पे सिंदूर नाथ,
साथ मातु का निभाने महावीर आया है।
मातु ने कहा है आयु आपकी बढ़ेगी इस,
लिये दास लाल ये शरीर कर आया है।
सुन के वचन राम बोले सभा बीच वीर,
हर व्यक्ति आपका ये यशगान गायेगा।
आपकी करेगा पूजा छोड काम धाम दूजा,
वह व्यक्ति आप द्वारा वरदान पायेगा।
आज दे रहा हूं वरदान महावीर तुम्हें,
पूर्व मुझे पूजने से ये विधान आयेगा।
जो सिंदूर से रंगेगा आप का शरीर संग,
संग आप के वह मेरा सम्मान पायेगा।