कितना कुछ सिखाती हैं ज़िंदगी,
कभी गिराती तो कभी उठाती है ज़िंदगी।
संघर्षों से लड़ना सिखाती है ज़िंदगी, आम से खास बनाती है ज़िंदगी।
कभी आशा कभी निराशा के बादल, दिखाती है ज़िंदगी।
कभी जेब खाली, तो कभी नोटों से भरती है ज़िंदगी।
कभी चेहरे पर उदासी, तो कभी मुस्कान लाती है ज़िंदगी।
कभी जोर से मुंह के बल गिराती है ज़िंदगी , तो कभी हाथ थाम कर उठाती है ज़िंदगी।
कभी बचपन में होले-होले चलाती है ज़िंदगी, ताउम्र बड़े जोर से दौड़ाती है ज़िंदगी।
कभी मंजिल से पीछे हमें खींचती हैं ज़िंदगी , है क्या मेरा अस्तित्व ये बताती है ज़िंदगी।
मंजिलों के पीछे दौड़ाकर थकाती है ज़िंदगी , थकने पर नया जोश भी भरती है ज़िंदगी।
कभी मायूस सी बनकर चेहरे को सुखाती है ज़िंदगी , तो कभी खुशी से सुर्ख़ बनाती है ज़िंदगी।
सच कहूं तो बहुत कुछ सिखाती है ज़िंदगी,
एक आदमी को आदमी बनाती है ज़िंदगी।
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