प्यास जग की है बहुत कितना पियो बुझती नहीं
जो लगी है दिल में सबके आग वह बुझती नहीं
प्यास है जग को सुरा की मेघ से मिटती नहीं
जो भंवर से पार कर दे नाव वह दिखती नहीं
है कमी कुछ भी नहीं पर मन ये चिंतित हो गया
क्या कमी है दिल में मेरे मुझको ही दिखती नहीं
है भरा पूरा जगत पर मन यह खाली क्यों रहा
मन की इच्छा है ही ऐसी जो कभी भरर्ती नहीं
प्यास को ही भूल जाऊं वो भुलावा दे मुझे
त्याग कर सब कुछ कहूं मैं प्यास अब दिखती नहीं
भाव में ही डूब जाएं आंसुओं के बूद से
मर चुकी संवेदना की मे प्यास अब दिखती नहीं
बिन पिए कुछ प्यासे रह गए पीके कुछ प्यासे रहे
पीके जग से चल दिए कुछ जगत में प्यासे रहे
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