चिराग आंधियों में अब जलाएगा कौन?,
गिरते हुए लोगों को अब उठाएगा कौन?,
सब लोग अपनी अपनी राह चल दिए,
भटके हुए लोगों को राह दिखायेगा कौन?।।
हम भी अगर चलने लगे भेड़ों की चाल तो,
मजबूर की आवाज, फिर उठाएगा कौन? ।
करने लगे जो हम भी,सियासत की जयकार।
तो हकीकत से रूबरू,फिर कराएगा कौन?।।
दिनकर और दुष्यंत को,जब पढ़ा तो जाना,
अपनी कलम से वफाएं,निभायेगा भला कौन ?
हर तरफ सियासत ही,सियासत चल रही है,
गरीब के घर में रोशनी,पहुंचाएगा भला कौन ?
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