भरे सम्मान गरिमा से,हिर्दय गंगा सा पावन था
निराले जगत से, दिल में, परम प्रिय प्रेम पलता था
सदा ओठो पे धर मुस्कान, हृदय को जीत लेते थे
बढा करके कदम अपना, हिमालय चूम लेते थे
लगन जो उठ गई मन में, वही वो ठान लेते थे
करके कर्म को अपने, सदा विश्राम लेते थे
जो उनके पास जाते, ज्ञान का भंडार पाते थे
वो पारस थे जिसे छूले,ओ हीरा बन ही जाता था
छिपा हो दिल में गम या छाई हो मुस्कान चेहरे पे
वो दिल की हर उमड़ती भावना, पहचान लेते थे
वो कहते थे पढ़ाया है गया कितना, न तुम सोचो
पढ़ा तुमने है कितना ये सदा ही, ध्यान में रखो
ये सारे गम बदल जाएंगे दुनिया में ही तब तेरे
जरा सा देखने का तुम, नजरिया जो बदल डालो
भला है क्या बुरा है क्या, हरदम ध्यान रखते थे
बने सब आत्मनिर्भर, सबको ऐसी सीख देते थे
नहीं था छल कपट दिल में, न कोई द्वेष था मन में
सदा ही सादगी को वह प्रथम स्थान देते थे
(परम पूज्य गुरुदेव प्रोफेसर पीएम पांडे सेवानिवृत्त रीडर हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ |
हृदय की अनुभूतियों से भाव भरी श्रद्धांजलि, शत शत नमन)