गुनगुनी धूप में

गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l
जैसे बैठी रहती हैं तितलियाँ,
पुष्प पर सब भूल कर l
जैसे बैठी रहती हैं चिड़ियां ,
तरुवरों को चूम कर ll
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l

माना नहीं होंगी इस ऋतु की, मेहरबानी ही हमेशा ,
क्या फ़र्क लेकिन
हे ! प्रियवर,
ज़िन्दगी का क्या भरोसा l
जो मिला है वक्त उसमें बैठे रहो यूँ साथ मेरे l
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l

जिस तरह ये धूप पाकर, पत्तियाँ हैं मुस्कुराती,
घर की चौखट की गुड़िया सारा आँगन घूम आती l
उस तरह से ही सही पर, थोड़ा बैठो पास मेरे ,
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l

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रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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