गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l
जैसे बैठी रहती हैं तितलियाँ,
पुष्प पर सब भूल कर l
जैसे बैठी रहती हैं चिड़ियां ,
तरुवरों को चूम कर ll
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l
माना नहीं होंगी इस ऋतु की, मेहरबानी ही हमेशा ,
क्या फ़र्क लेकिन
हे ! प्रियवर,
ज़िन्दगी का क्या भरोसा l
जो मिला है वक्त उसमें बैठे रहो यूँ साथ मेरे l
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l
जिस तरह ये धूप पाकर, पत्तियाँ हैं मुस्कुराती,
घर की चौखट की गुड़िया सारा आँगन घूम आती l
उस तरह से ही सही पर, थोड़ा बैठो पास मेरे ,
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे l
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