साँस लेता सदन अब रहा ही नहीं
दृष्टि में बाँक पन अब रहा ही नहीं
इस तरह फूल तोड़े गये डाल से
वो महकता चमन अब रहा ही नहीं
ढूँढे मिलता नहीं प्यार सच्चा यहाँ
जिस्म दो एक मन अब रहा ही नहीं
स्वार्थ कुछ इस तरह छा गया आजकल
दोस्ती का चलन अब रहा ही नहीं
विश्व बाजार की मण्डियाँ हैं यहाँ
ये वतन वो वतन अब रहा ही नहीं
कत्ल करने लगे हैं मसीहे यहाँ
उनका उन जैसा मन अब रहा ही नहीं
सिंधु मंथन में विष की घुटन रोक ले
शंकरी आचमन अब रहा ही नहीं
जिसको माना था हमने कभी अपना वो
जानेमन जानेमन अब रहा ही नहीं
दान कर दे स्वयं राष्ट्र हित के लिये
वो दधीचि सा तन अब रहा ही नहीं
इस तरह से छला हमको सरकार ने
मेरा तन मेरा तन अब रहा ही नहीं
उनकी आँखो में कल एक आकाश था
जिनके तन पे कफन अब रहा ही नहीं
हैं कदम दर कदम सिर्फ बेचैनियाँ
चैन खोया अमन अब रहा ही नहीं
जुर्म होने लगे हैं सरे मुंसिफी
राज कुछ उपशमन अब रहा ही नहीं