शाख से टूटा है, क्या जाने किधर जायेगा।
हवा चली है तो कुछ जे़रो ज़बर जायेगा।।
जिगर के खून से हमने लिखे हैं खत इतने,
सुना है, बेच कर रद्दी वो घर बनायेगा।।
बहुत गुरूर था, उसको मुहब्बत पर अपनी,
ना खबर उसको थी कि टूट बिखर जायेगा।।
जलाये घर हैं जिसने, बस्तियां जला डालीं,
सुना है शख्स वही, मेरे शहर आयेगा।।
जा रहे हो तो जाओ, इतना भी ख्याल रहे,
चमन खिला है जो वीरान नज़र आयेगा।।
मेरा रकीब ‘शेष’ है उसूलों का पक्का ,
दीया तुर्बत का बुझाने वो इधर आयेगा।।
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