शबनमी शोले वस्ल-ए- शबाब और क्या क्या।
लचकती शाख पे ताजा गुलाब और क्या क्या।
जमाले रुख पे कातिल अदा नशीली नज़र
ज़मीं पे आगया है माहताब और क्या क्या।।
रेशमी जुल्फों की हवा है या बहिश्ते महक,
उस पर ये हया शफ़्फा़फ़े हिजाब और क्या क्या।
तुम आ रहे थे तो दिल ही बिछा दिया हमने,
चोट धड़कन की न लगे जनाब और क्या क्या।।
गज़ल कहूं या शुकून-ए- जिगर कहूं मैं ‘शेष’
दीये सी रौशनी हुश्नों शबाब और क्या क्या।।
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