कैसी है माया तिरी , कैसा है ये जाल ।
बदन गठरिया पाप की , प्राणों में सुकताल ।
या तो खुद प वार करे , या पापों पे वार ।
मन है सबका दोस्तो , दो धारी तलवार ।
तू आंखों का नूर है , तू मीठा अंगूर ।
खुशबू तेरी याद की , जलता हुआ कपूर ।
तुम होठों की प्यास हो , तुम दिल की तस्कीन ।
तुम मुस्काती रोशनी , तुम अहसास महीन ।
उम्मीदें गुज़रीं सभी , उतरा मिरा जुनून ।
ख़ुद के भीतर जब गया , गहरा हुआ सुकून ।
दुनिया इक बाज़ार है , हर इंसान दुकान ।
या तो बेचे कर्म को , या बेचे मुस्कान ।
भोर हुई मनभावनी , संध्या हुई ललाम ।
तुम आए तो बाग में , महके मीठे आम ।
आओ बैठो साथ में , करो ज़रा जलपान ।
थोड़ा तो रख लीजिए , इस प्रेमी का मान ।
जान जावगे एक दिन , कितना तिल में तेल ।
इतनी चिन्ता काय की , जीवन है इक खेल ।
ना काहू की हार है , ना काहू की जीत ।
मधुर स्वरों में गाइए , जीवन एक सुगीत ।
धीरे धीरे जाइए , आप पिया के देस ।
जीवन एक यात्रा है , नहीं है कोइ रेस ।