कैकई तुम उदास मत होना

कैकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था ।

विधि ने लिखा वनवास राम का,

तुमने अपयश कहां कमाया था ।।

राम यदि वन को न जाते,

कैसे पूर्ण काम हो पाते ।

हाहाकार करती थी अवनी,

कैसे उसकी व्यथा मिटाते ।।

ये लीलाधर की ही लीला थी,

जिसको कोई समझ न पाया था ।।

कैकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था ।।

खर_दूषण कैसे मारे जाते,

जिसने आतंक मचाया था ।

ऋषि मुनि का यज्ञ भंग करके,

नाना प्रकार से उन्हें सताया था ।

राम ने उनसे विकट युद्ध करके,

यमपुरी उन्हें पहुंचाया था ।।

केकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था ।।

साधु भी सैतान हो सकता है,

रावण ने ये सबको बताया है ।

रूप साधु का रखकर रावण,

देखो सीता को हरने आया है ।।

स्वर्ण मृग मारीच बना था,

सीता के मन को भाया था ।।

कैकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था ।।

वो एक रेखा भी पार न कर सका,

जो तीन लोक हराकर आया था

अपने निज बाहुबल से जिसने,

शिव का कैलाश उठाया था ।

जो ज्ञाता था छः शास्त्रों का,

उसने ये निज पाप कमाया था ।।

कैकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था,

सीता का हरण कर के रावण,

उन्हें लंका में ले आया था,

शोक से भरी हुई सीता को,

अशोक वाटिका में ठहराया था,

तिनके की ओट लेकर सीता ने,

रावण को तिनके के समान बताया था ।।

कैकई तुम उदास मत होना,

तुमने अपना कर्तव्य निभाया था ।

विधि ने लिखा वनवास राम का,

तुमने अपयश कहां कमाया था ।।

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रचनाकार

Author

  • अनूप अंबर

    नाम : अनूप अंबर जन्म तिथि:01जनवरी 1991 पिता का नाम:राजेश कुमार पता: फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेशइनके नौ साझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, पच्चीस अर्थलोगी प्रकाशित हो चुकी है, विभिन्न मंचों से 150 से अधिक सम्मान पत्र प्राप्त है, इनकी विभिन्न रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,ये कई साहित्य पटलों पर सक्रिय है ।। Copyright@अनूप अंबर / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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