इन आँखों को रुलाने का मज़ा कुछ और होता है,
ख़ुदा से ख़ौफ़ खाने का मज़ा कुछ और होता है।
हमारी ये ग़लत फ़हमी रुलाती है बहुत हमको,
कि रो कर मुस्कुराने का मज़ा कुछ और होता है।
ख़याले यार आए और टिकी हों ग़ैर पर नज्रें,
तो घबरा कर झुकाने का मज़ा कुछ और होता है।
सरे बाज़ार इक सूफ़ी लगाता है सदा अक्सर,
ख़ुदा से दिल लगाने का मज़ा कुछ और होता है।
बहुत हैं ग़मगुसार अपने, मगर जो तैबा वाले हैं,
उन्हें दुखड़ा सुनाने का मज़ा कुछ और होता है।
किसी को चाह कर अच्छी तरह हमको समझ आया,
किसी से चाहे जाने का मज़ा कुछ और होता है।
हथेली पर लिये फिरते हैं दिल जब से सुना हम ने,
कि दिल पर चोट खाने का मज़ा कुछ और होता है।
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